आदिवासी संस्कृति
आदिवासी शब्द भारत में आदिम युग से निवासीत लोगों के लिये किया जाता हैं। ब्रितिश समाज शास्त्रियो ने आदिवासियों को प्रारंभिक मानवों के रूप में वर्गीकृत किया था राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार जन जातियों को आदिवासी के रूप में सुचिबद्ध किया गया हैं। आदिवासी हालांकि हिन्दु नहीं हैं। फिर भी उन्होने हिन्दु संस्कृति की कर्इ मान्यताओं को आत्मसात कर रखा हैं। जन जाति का मुखिया सरपंच होता हैं। जो विवादों की स्थिति में मध्यस्थ और प्रमुख सलाहकार की भुमिका निभाता हैं। तथा यह पद अति सम्मानित माना जाता हे। जिनके निर्णय को जन जाती समुदाय को स्विकार करना होता हैं। भारत में आदिवासीयों के कर्इ प्रकार पाये जाते हैं। और उनमें से अधिकांशत: छ.ग. में निवासरथ है। वास्तव में यह राजय भारत के सबसे प्राचिन जनजातिय समुदायों का राज्य है। जहां प्रारंभिक युग से ही आदिवासी पिछले 10 हजार वर्षों से निवासरथ हैं। जब आर्यों द्वारा भारतीय भु-भाग पर शासन प्रारंभ किया गया तब से और मैदानी क्षेत्रों को युद्ध पिड़ीतों तथा कृषि के लिये वनरहित किया गया छ.ग. के प्रमुख आदिवासियों के नाम इस प्रकार हैं।
बस्तर- गोंड़, अबुझमाडि़या, बिसन हार्नमारिया, मुरिया, हल्बा, भतरा परजा, धुरवा
दंतेवाड़ा - मुरिया, डंडामी मुरिया, या गोंड, दोरला, हल्बा
कोरिया- कोल, गोंड, भुंजिया,
कोरबा - कोरवा,गोंड, राजगोंड, कवर, भुर्इया, बिंछवार, धवर,
बिलासपुर और रायपुर - पारधी, सारवा, मांझी, भुर्इयां
गरियाबंद मैनपुर छुरा धमतरी - कमार
सरगुजा और जशपुर - मुंडा
इनमें से प्रत्येक का अपना समृध एवं विशिष्ट इतिहास तथा संगीत नृत्य परिधान और खान-पान की संस्कृति रही है। इन सभी में एक आम बात यह है। की सरल सच्चे प्रकृति प्रेमी तथा जीवनचर्या की प्रतिबद्धता में समान हैं। पिछली सदियों की अपेक्षा इनमें कुद बदलाव निश्चय ही आया है। विवाह जनजातियों के बीच ही होती हैं। मृतकों के अंतिम संस्कार हेतु दफनाने और जलाने दोनों विधीया प्रयुक्त की जाती हैं। अंतिम संस्कार के पश्चात का अनुष्ठान इतने महंगे हैं। की वहन करना मुश्किल होता हैं। घर के मुख्य बड़े लोगो द्वारा यह संस्कार सम्पन्न कराया जाता हैं।
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