Wednesday, 26 June 2013


आदिवासी संस्कृति
आदिवासी शब्द भारत में आदिम युग से निवासीत लोगों के लिये किया जाता हैं। ब्रितिश  समाज शास्त्रियो ने आदिवासियों को प्रारंभिक मानवों के रूप में वर्गीकृत किया था राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार जन जातियों को आदिवासी के रूप में सुचिबद्ध किया गया हैं। आदिवासी हालांकि हिन्दु नहीं हैं। फिर भी उन्होने हिन्दु संस्कृति की कर्इ मान्यताओं को आत्मसात कर रखा हैं। जन जाति का मुखिया सरपंच होता हैं। जो विवादों की स्थिति में मध्यस्थ और प्रमुख सलाहकार की भुमिका निभाता हैं। तथा यह पद अति सम्मानित माना जाता हे। जिनके निर्णय को जन जाती समुदाय को स्विकार  करना होता हैं। भारत में आदिवासीयों के कर्इ प्रकार पाये जाते हैं। और उनमें से अधिकांशत: छ.ग. में निवासरथ है। वास्तव में यह राजय भारत के सबसे प्राचिन जनजातिय समुदायों का राज्य है। जहां प्रारंभिक युग से ही आदिवासी पिछले 10 हजार वर्षों से निवासरथ हैं। जब आर्यों द्वारा भारतीय भु-भाग पर शासन प्रारंभ किया गया तब से और मैदानी क्षेत्रों को युद्ध पिड़ीतों तथा कृषि के लिये वनरहित किया गया छ.ग. के प्रमुख आदिवासियों के नाम इस प्रकार हैं।

बस्तर- गोंड़, अबुझमाडि़या, बिसन हार्नमारिया, मुरिया, हल्बा, भतरा परजा, धुरवा
दंतेवाड़ा - मुरिया, डंडामी मुरिया, या गोंड, दोरला, हल्बा
कोरिया- कोल, गोंड, भुंजिया,
कोरबा - कोरवा,गोंड, राजगोंड, कवर, भुर्इया, बिंछवार, धवर,
बिलासपुर और रायपुर - पारधी, सारवा, मांझी, भुर्इयां
गरियाबंद मैनपुर छुरा धमतरी - कमार
सरगुजा और जशपुर - मुंडा
इनमें से प्रत्येक का अपना समृध एवं विशिष्ट इतिहास तथा संगीत नृत्य परिधान और खान-पान की संस्कृति रही है। इन सभी में एक आम बात यह है। की सरल सच्चे प्रकृति प्रेमी तथा जीवनचर्या की प्रतिबद्धता में समान हैं। पिछली सदियों की अपेक्षा इनमें कुद बदलाव निश्चय ही आया है। विवाह जनजातियों के बीच ही होती हैं। मृतकों के अंतिम संस्कार हेतु दफनाने और जलाने दोनों विधीया प्रयुक्त की जाती हैं। अंतिम संस्कार के पश्चात का अनुष्ठान इतने महंगे हैं। की वहन करना मुश्किल होता हैं। घर के मुख्य बड़े लोगो द्वारा यह संस्कार सम्पन्न कराया जाता हैं।

सम्पूर्ण जानकारी आभार सहित chhattisgarhtourism के साईट से प्राप्त

चित्रधारा जलप्रपात
बस्तर के पर्यटन स्थलों में चित्रकोट व तिरथगढ़ प्रमुख है लेकिन चित्रधारा की  जलधारा भी धीरे-धीरे पर्यटको  को अपने और आकर्षित करती जा रही है चित्रधारा  संभाग मुख्यालय से 15 किमी दूर पर तोकापाल ब्लाक के ग्राम पोटानार स्थित में है यह एक मौसमी झरना है। इसके आस-पास उचे उचे  प्रकृतिक पर्वतीय माला के दृश्य भी काफी मनोरम हैं। वर्षा ऋतू में  इस जल प्रपात की  प्राकृतिक सौंर्दय अपनी छटा इस प्रकार बिखरती है कि पर्यटक मनमुग्ध हो जाता है। 


भारत में ही टूरिज्म के इतने अनछुए स्पॉट्स हैं और सदियों से अनछुए पड़े हैं कि भारत के लोग भी उनके बारे में कम ही जानते हैं प्रस्तुत तस्वीर चित्रकोट जलप्रपात  की है जो की छत्तीसगढ़ में  स्थित है वैसे छत्तीसगढ़ का भू-भाग, पुरातात्विक, सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात 
भारत का सबसे बड़ा जलप्रपात है।  टूरिज्म विभाग के मुताबिक यह देश भर में सबसे चौड़ा जलप्रपात है। सभी मौसम में आप्लावित रहने वाला यह वाटरफॉल पौन किलोमीटर चौड़ा और 90 फीट ऊंचा है।इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएं गिरती हैं।  एशिया का नियाग्रा नाम से विख्यात चित्रकोट जलप्रपात इन्द्रावती नदी के घाटी में गिरने से बना है ।श्री राम वन पथ गमन मार्ग में भी चित्रकोट जलप्रपात  का उल्लेख है

Monday, 24 June 2013

Kanger valley

कांगेर धारा------ जो की कुटुमसर गुफा जाने के रास्ते में 7 किलो मीटर की दूरी पर कांगेर नदी पर स्थित है। टेढ़ी मेढ़ी चट्टानों के बीच यहां का घाटी सौंदर्य तो अप्रतिम व देखने लायक है।
तस्वीर साभार - mitul s chauhan




भय और रोमांच का मिश्रण गुल्मी 
गुल्मी जगदलपुर उड़ीसा सीमा से 20 किलोमीटर की दुरी पर तथा जगदलपुर से ये 50 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। घने जंगलो के बीच से गुजरने वाले रास्ते को पार कर इस खूबसूरत जगह पर पहुचा जा सकता है कोलाब नदी पर स्थित ये पर्यटन स्थल बहुत ही सुंदर है। ऊचे ऊचे पहाड़ो के बिच से गुजरती कोलाब नदी इस स्थान पर 2 बड़ा रेतीला तट बना देती है जिसे बहुत से लोगो को ये जगहा फिल्म कहो ना प्यार है के एक द्र्श्य जैसा लगता है। 2 रेतीला तट होने के कारण अधिक्तर लोग पहले रेतीला तट को पार कर दुसरे रेतीला तट पर जाने की कोशिस करते है,चूकी कोलाब नदी ऊचे पहाड़ो के बिच से गुजरती हुई यहाँ आती है इस कारण इस का बहाव बहुत तेज होता है और दुसरे रेतीला तट पर पानी के बिच से जाने वाले रस्ते में बिच बिच में दलदली स्थान है लोग इसे पार कर के दुसरे रेतीला तट पर जाने की कोशिस करते है उन में से अधिकतर लोग मारे जाते है। गुल्मी पर इल्जाम है की 120 से अधिक लोगो की जान इसने ली है? औसम बस्तर की टीम इस बात का खंडन करती है हमारा मानना है की पर्यटक यहाँ अपने विवेक से काम न करते हुवे अपनी जान गवाते है। दूर से इस सुंदर जगह को निहारे ना की आज कुछ तूफानी करने के चक्कर में अपने आप को खतरे में डाले।
@जानकारी व तस्वीर आभार सहित रविश राज परमार जी से प्राप्त     

Friday, 21 June 2013


बीजापुर घाट
यह घाट बीजापुर से भोपालपटनम के मध्य पड़ती है 8 किलोमीटर लम्बे इस घाट में बहुत सुंदर वादीया देखने को मिलती है घने जंगल के बीच पड़ने वाले इस घाट में कई बार जंगली जानवरों के दर्शन भी हो जाते है
@सम्पूर्ण जानकारी व तस्वीर आभार सहितVarun Karki जी से प्राप्त

Wednesday, 19 June 2013

बस्तर की बांस कला आधुनिकता के इस चकाचौंध की दुनिया में आज भी बस्तर की बांस कला के सहारे हमारी विरासत की कलाएं जीवित हैं। यह पौधा अपनी शुद्धता के चलते धार्मिक व सांस्कृतिक जगत में विशेष महत्व रखता है तो बदलते समय में भी इसकी मांग कम नहीं हुई है। आसानी से उपलब्ध बांस से बनी सजावटी वस्तुएं शानदार बंगलों की खूबसूरती में चार चांद लगाने का प्रमुख स्रोत बनकर उभर रही हैं। इस प्रचलन ने बांस की शिल्पकला को नये आयाम देकर बस्तर के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए रोजगार के ढेरों अवसर पैदा कर दिये हैं। खासकर ऐसे लोगों के लिए जो अपनी मेहनत एवं हुनर को नये-नये आकार में ढालने के लिए प्रयासरत रहते हैं। ये लोग बांस शिल्प कला में अपने हाथ आजमाकर खूब कमाई कर रहे हैं।
प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर
ये मंदिर पुरना पुल के समीप स्थित है भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर प्रमुख मंदिरों में से एक है। इन्द्रावती नदी के तट पर स्थापित 'श्री लक्ष्मी-नारायण मंदिर' बहुत प्राचीन है इस मंदिर परिसर के पास 
रहने वाली बुजुर्ग महिला ने बताया की दीपावली के समय राजा यहाँ पूजा करने आते थे उस महिला ने बताया जगदलपुर के राजा ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर सम्पूर्ण मनोकामना को पूर्ण करता है । आज भी जानकर लोग दीपावली के पूर्व संध्या को यहाँ पूजा अर्चना करने आते है